मेरा शहर - मेरा प्रवासी
- Aadishaktii S.
- Jan 27
- 2 min read
मेरे शहर में एक प्रवासी आया।
उस शहर में, जहाँ मैं स्वयं प्रवासी हूं। मैं क्या, यहाँ रहने वाला हर एक प्राणी, हर कण, हर ईंटा पथरा तक प्रवासी है।
पर, मेरे इस शहर में, एक प्रवासी आया।
अब यूं तो उस प्रवासी के गाँव की मिट्टी मेरा भी मायका होती है। ये प्रवासी कभी मेरा हमसाया हुआ करता था। पर वो मेरे लिए प्रवासी ही था। सालों से वाद संवाद का सौभाग्य प्राप्त न था, तो उसके आगमन की सुर्खियों में हमने आनंद कुछ कम, पर आतुरता कुछ अधिक महसूस की। आतुरता ऐसी कि मानो सालों बाद घर जाने पर, अपने पिता के घर के लोटे में कोई घड़े से निकाल कर पानी मेरी ओर ला रहा हो।
ख़ैर, मेरे शहर में ये प्रवासी अंततः आ ही गया!
वो मेरी चौखट पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसकी ऐनक में मुझे मेरे बचपन, मेरे आंगन और मेरे खोए हुए घर के प्रतिबिंब दिखे। मुझे दिखी एक जानी पहचानी सी मुस्कान, मुझे पता ही नहीं था कि इस मुस्कान की मुझे विगत वर्षों में आदत लग भी गई थी! और साथ ही दिखी, मेरे कपाट की जाली से आधी झांकती हुई एक काया, जो कुछ इस प्रकार विशाल थी कि उससे भय नहीं, उसपर भरोसा हो। भरोसा कि ये मेरे वयस्क होने के बोझ को एक आलिंगन में बटोर सकती है। अलबत्ता, मैं हैरान थी, क्योंकि इस प्रवासी को मै पहचानती हूँ, पर बिलकुल नहीं जानती। अब इसके चेहरे और शरीर पर स्वयं को जीवित रख लेने का गर्व प्रकट हो रहा था।
मुझे भी उसपर गर्व हुआ। मुझे हमेशा से ही उसपर गर्व रहा है। जब पिछली बार इस प्रवासी के दर्शन हुए थे, ये तब बच्चा ही था। अब इसके बालपन की हत्या का आरोप इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि पर है।
बाक़ी सब किसी और के पढ़ने या जानने लायक दिलचस्प नहीं। और न ही वो इतना तुच्छ है कि उसे याद रखने के लिए मुझे उसे लिखना पड़े।
पर ये जो मुझे अभी महसूस हो रहा है, वो उल्लेखनीय है।
ये शहर मेरा नहीं है (contrary to my previous claims in this very writing)।
यहाँ मैं लगभग एक साल से रह रही थी, कुछ दोस्त यार भी बन गए थे। सब ठीक था, पर एक उलझन सी थी कि क्यों 'सपनों के नगर' को मैं अपने सपनों में भी रूमानीकृत नहीं कर पा रही?!
मगर इस प्रवासी के यहाँ पग फिरा जाने से यहाँ की रेत में न जाने कैसा सोना मुझे दृष्टिगत हुआ है कि न केवल मैंने इस शहर के विषय में अपनी समस्त शिकायतें उसके कोछे में बांध दीं हैं पर मुझे इस शहर में सपने दिखने लगे हैं। यहाँ की हवाएं कुछ कोमल हो गईं हैं। मुझे इस शहर से ... थोड़ी सी मोहब्बत हो गई है।
अब जो मैं शहर में नहीं हूँ,
मुझे सपनों के शहर के सपने आते हैं।
कभी कभी उन सपनों में एक प्रवासी आता है।
और मेरी चौखट पर अब सिर्फ मेरे अपने आते हैं।
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