जाता साल
- Aadishaktii S.
- Jan 20
- 2 min read
This post has been sourced from my old blog.
Original blog date: December 31, 2016
कुछ चीज़ों को जाने देने में ही भलाई है। क्योंकि पापा कहते हैं " अति केवल क्षति की और अग्रसर करती है।"
हाँ, 2016 की ही बात कर रही हूँ| जाने देने से अभिप्राय हमारे रोकने के बल से नहीं, बल्कि उसको बुलंदी से स्वीकार करना है । वैसे भी साल 365/366 दिनों से ज़्यादा का नहीं होता! :D
अतीत में विहार करने से कोई लाभ नहीं , परंतु उस अतीत से सबक लेने में कोई बुराई भी नहीं। ...
कई लोग इस साल बेहतर हुए, बत्तर हुए, बड़े हुए, तथा हरकतों से ओछे भी हुए! सबको पता भी है किसमे क्या परिवर्तन आए| किसी ने मासूमियत तज दी, तो किसी ने अपने आस पास संस्कारों की दीवार कड़ी कर ली। किसी ने सच्चे प्रेम की सूरत अपने घर के बाहर खड़े भूखे कुत्ते में देखी, तो किसी ने क़रीबी दोस्त से ही चोट खाई| किसी ने कामयाबी की पहली सीढ़ी चढ़ी, तो किसी ने ग़लतियों की सड़क पार कर दी । किसी ने असलियत का पहला पन्ना पलटा, तो किसी ने कल्पनाओं की ग्रंथि लिख ख़त्म की । कोई अच्छाई का दरिया तैर गया, तो कोई बुराई की आग में भी धकेल दिया गया|
फ़र्क़ नहीं पड़ता कोई कितना भटका, कोई कितनी बार गिरा, पर फ़र्क़ पड़ता है इस चीज़ से, की उसने कितने नज़ारे देखे, कितनी बार वो उठा, और सबसे ज़्यादा, की वो घर लौटा ! उसने खुद से परिचय किया! चकित हुआ! अपने अंदर के ब्रह्माण्ड को सबसे बड़ी स्वीकृति दी... खुद की !
अभी भी घंटे बाकी हैं, चन्द...। अभी भी लोग लोग अपने आप को खोज रहे हैं, गिर भी रहे हैं, संभल भी रहे हैं, पर खुश होने की बात ये है की हार नहीं मान रहे :) ।
याद रखने की बात केवल इतनी है, की यह 366 दिन, सफ़र का एक और चरण थे। जिससे सीखना होगा, वार्ना नुकसान है अपना। लाज़मी है, कोई खुश होगा, कोई दुखी, लेकिन फिर भी, जाने वालों का कोछा, और आने वालों पर फूल, हमेशा मुस्कुरा कर ही डाले जाते हैं :) <3
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