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तुम्हारा सन्नाटा

  • Writer: Aadishaktii S.
    Aadishaktii S.
  • Jan 20
  • 1 min read

This post has been sourced from my old blog.

Original Blog Date: July 16, 2020


कल रात तुम्हारे सन्नाटे से मैंने कुछ पल बातें की

तुम सुनो गौर से शायद वो तुमसे कुछ कहना चाहता है

अब कितनी गश्त लगाएगा वो अपनी उजड़ी बगिया की?

वो मेरी शांत मरुभूमि पर जल बनकर बहना चाहता है!


कल शाम तुम्हारा सन्नाटा मेरे उन्माद के पास गया

वो मूक तुम्हारा, मेरे शोर की राग सीखना चाहता है!

तुम खालीपन के मेले से ले दो उसको उद्गार नया

वो रुदन की वर्षा में रस राग मल्हार के चखना चाहता है!


ये राज़ सभी धीरे से उसने आंखों को बतलाए हैं।

इस नादानी की दौलत पर वो ताले कसना चाहता है!

उसके ये राज़ तुम्हारी आंखें बड़े चाव से गाती हैं,

वो तो मेरे उन्माद के संग, सदियों तक हसना चाहता है!

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