सतरंग
- Aadishaktii S.
- Jan 20
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This post is sourced from my old blog.
Original Blog Date: April 18, 2022
ध्वस्त गाँव की राख समेटे, मैं घर कहां पर पाऊंगी?
टूटी मैं दो टांगें लेकर कितनी दूर चल पाऊंगी?
आंखें दोनो खाली कर लीं, प्यास पुरानी गटक गई।
एक कहानी, पौन मुस्काने पर होठों पर अटक गईं।
किसको देखके बिलखा है मन, और कहां ये बलख गया।
जिसके संग सब प्रीत लगाई, वो किस दुनिया में टरक गया?
अब अपनी सब यादों की, कुछ ख्वाबों की बस गुड़िया मैं।
दिखने में जो स्याह लगे, हूं उस सतरंग की पुड़िया मैं।।
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